Saturday, 28 April 2018

37 WPM


वर्तमान मामले में याचिकाकारी 10 नवम्‍बर, 20005 को फाईल की गई थी किंतु यह याचिका आदेश सुनवाई के लिए तारीख 14 नवम्‍बर 2005 को न्‍यायालय के समक्ष प्रस्‍तुत की गई थी। याची संख्‍या 2 को तारीख 9 नवम्‍बर 2005 को गिरफ्तार किया गया था। अत: जब न्‍यायालय द्वारा याचिका पर विचार किया गया तब तक निरूद्ध व्‍यक्ति पहले ही सिविल कारागार से छूट चुका था। याचिका में कोई वाद हेतुक नहीं रह गया था। अत: अवैध निरोध के लिए प्रतिकर का दावा करने के लिए फाईल संशोधन आवेदन इस आधार पर ही खारिज किए जाने योग्‍य है कि जब तारीख 14 नवम्‍बर, 2005 को याचिका आदेश के लिए प्रस्‍तुत की गई तब तक निरूद्ध व्‍यक्ति को पहले ही छोड़ा जा चुका था। और संशोधन पर इस कारण विचार नहीं किया जा सकता क्‍योंकि वाद हेतुक पहले ही समर्थ हो गया था। यदि बहस के लिए यह मान भी लिया जाये कि याचिका उस समय ग्राह्रय थी जब आदेश के लिए उसे प्रस्‍तुत किया गया था तब भी प्रतिकर का दावा करने के लिए संशोधन आवेदन इस आधार पर अनुज्ञात नहीं किया जा सकता कि निरूद्ध व्‍यक्ति के पास न्‍यायालय फीस का संदाय करने के पश्‍चात प्रतिकर के लिए वाद फाईल करने का समान उपचार उपलब्‍ध था। और इसलिए वर्तमान मामले के तथ्‍यों और परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए इस रिट अधिकारिता का अवलंब लेना उचित नहीं है। याचिओं कें विद्यवान अधिवक्‍ता द्वारा अवलंब लिए गए मामले अवैध अभिरक्षा में यातना से संबंधित थे। किंतु वर्तमान मामले में ऐसा कोई परिस्थितिजन्‍य कारण नहीं आया। याची को  मात्र वसूली मांगों के अनुसरण में सिविल कारागार में निरूद्ध किया गया था और उसे उसकी गिरफ्तारी से अगले दिन ही छोड़ दिया गया था। जब प्रत्‍यर्थीयों को यह पता चला कि मांग सूचनाओं कें प्रवर्तन को रोक लगाने वाला आदेश पारित कर दिया गया है।
   संपूर्ण साक्ष्‍य तथा तथ्‍यों पर विचार करने के पश्‍चात और कानूनी स्थिति की समीक्षा करने के उपरांत हम इस मत पर आये है कि अभियुक्‍तगण को चौहान की मृत्‍यु कारित करने के अपराध के लिए धारा 304 भाग-2 भारतीय दण्‍ड संहिता सहपठित धारा 149 भारतीय दण्‍ड संहिता के अंतर्गत 5-5 वर्ष के कठोर कारावास का दण्‍डादेश एवं 10-10 हजार रूपए के अर्थदण्‍ड से दण्डित करना उचित होगा।


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