विद्यवान
विचारण न्यायालय द्वारा माननीय सर्वोच्य न्यायालय की न्यायदृष्टांत में
अपीलार्थी के विरूद्ध न्यायदृष्टांत का उचित रूप से संदर्भ लेते हुए उभय पक्ष के
मध्य व्यवहार प्रकृति का विवाद होना पाया है। उक्त आदेश विधिसम्मत्, औचित्यपूर्ण
तथ्यों के अनुरूप पारित किया गया है। जिसमें हस्तक्षेप किए जाने का कोई आधार
दर्शित नहीं होता है। अत: विद्यवान विचारण न्यायालय का आदेश दिनांक 21 अपैल 2015
की पुष्ठि की जाती है तथा पुनरीक्षणकर्ता की ओर से प्रस्तुत पुनरीक्षण याचिका
प्रमाण के अभाव में निरस्त की जाती है।
अभियुक्त के विरूद्ध धारा 7 एवं 13 सहपठित
धारा 13 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की अंतर्गत आरोप है कि उसने दिनांक 30
दिसम्बर 2013 के पूर्व से नायब तहसीलदार न्यायालय में सहायक ग्रेड-3 जो कि
लोकसेवक का पद है, पर पदस्थ रहते हुए प्रथी वह अन्य के नाम से खरीदी गई रसीद
भूमि के नामांतरण कराने के एवज में अपने पद्वीय कर्तव्य के दौरान वैध पारिश्रमिक
भिन्न अवैध पारितोषण के रूप में 3000 रूपए की मांग की एवं दिनांक 30 जनवरी 2013
को प्रार्थी एवं अभियोगी से वैध पारिश्रमिक से भिन्न अवैध पारितोषण की राशि रूपए
2000 प्राप्त ली तथा लोकसेवक के पद पर पदस्थ रहते हुए भ्रष्ट या अवैध साधनों से
अपने पद का दुर्पयोग करते हुए दिनांक 20 जनवरी 2013 को अभियोगी से 2000 रूपए स्वयं
के लिए वैध पारिश्रमिक से भिन्न राशि प्राप्त कर आपराधिक अवचार का अपराध कारित
किया।
आवेदन की ओर से यह तर्क किया गया है कि यह
उसका प्रथम नियमित जमानत आवेदन पत्र है, इसके अतिरिक्त् अन्य कोई आवेदन माननीय
उच्च न्यायालय खण्डपीठ ग्वालियर के समक्ष ना तो लंबित है और ना ही निराकृत
किया गया है। वह दिनांक 04 जनवरी 2017 से न्यायिक निरोध में है, वह निर्दोष है
उसे प्रकरण में मिथ्या आलिप्त किया गया है। प्रकरण के निराकरण में समय लगने की
संभावना है। अभियुक्त शिवपुरी जिले का स्थाई निवासी है। उसके भागने एवं फरार होने
की कोइ संभावना नहीं है। अभियुक्त अन्वेषण में पूण सहायोग करेगा। तथा
अभियोजन साक्षियों को प्रभावित भी नहीं करेगा। वह जमानत की शर्तो का पूरी तरह
से पालन करेगा। अभियुक्त ने अपने आवेदन
के समर्थन में अपने भाई सुनील का शपथपत्र प्रस्तुत किया है।
किसी प्रकरण में यदि कोई साक्ष्य
अपीलार्थी की ओर से पेश किया गया है और उस साक्ष्य पर किसी भी
अभियोजन साक्षी के द्वारा कोई निरोध नहीं करता है तो ऐसी स्थिति में न्यायाधीश उस मामले में
गंभीरता से विचार विमर्श करेगा और तब अपने अंतिम निर्णय को अभिलिखित करेगा।
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