प्रकरण
में अभियुक्त के विरूद्ध धारा 106 भारतीय दण्ड संहिता के अधीन यह आरोप है कि
उसने दिनांक 16 फरवरी 2016 को शाम 8 बजे के पूर्व से मेघा को शारीरिक व मानसिक रूप
से प्रताडि़त किया तथा उसके साथ मारपीट कर उसे आत्महत्या करने के लिए दुष्प्रेरित
किया जिसके परिणाम स्वरूप मेघा ने उक्त दिनांक को 7 से 8 बजे के लगभग काम के बीच रास्ते में रेल के
सामने आकर आत्महत्या कर ली।
प्रकरण में आरोपी के विरूद्ध भारतीय दण्ड
विधान की धारा 498, 506 एवं दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 के अंतर्गत अपराध विरचित
कर विचारण प्रारंभ किया गया। प्रकरण
में अभियोजन द्वारा साक्ष्य समाप्त घोषित की गई तथा
प्रकरण में अभिलेख पर आई हुई साक्ष्य के आधार पर आरोपी के विरूद्ध दण्ड
प्रक्रिया संहिता की धारा 313 के अंतर्गत कथन में उसने बताया कि वह वेकसूर है तथा उसे झूठा
फंसाया गया है। आरोपी की ओर से बचाव साक्ष्य भी अभिलेख पर प्रस्तत की गई है।
प्रकरण में अभिलेख पर आई साक्ष्य आपस में सशख्त एवं विचारणीय है तथा ऐसी स्थिति
में साक्ष्य की पुनरावृत्ति के दोष निवारणार्थ उक्त विचारणीय प्रश्नों का
निराकरण किया जा रहा है।
उक्त प्रकरण में इस प्रकार अभिेलख पर जो
साक्ष्य आई है उसके अवलोकन से यह स्पष्ट है कि मामले की फरियादियान ने अपने कथन
में स्पष्ट रूप से बताया है कि आरोपी द्वारा विवाह की दो वर्ष पश्चात से दहेज
की मांग की जाने लगी। उक्त साक्षी की साक्ष्स से यह स्प्ष्ट है कि दिनांक 28
जून 2013 को आरोपी द्वारा न केवल दहेज की मांग
की गई, बल्कि फरियादिया के साथ मारपीट भी की गई और जान से मारने की धमकी दी
गई। उक्त साक्षी के कथनों का अनुसमर्थन अभियोजन साक्षी 02, अभियोजन साक्षी 03 की
साक्ष्य से भी हो रहा है। भारतीय दण्ड सहिता की धारा 292, 293, और साथ में दण्ड
प्रक्रिया संहिता की धारा 501 या 502 की उपधारा 3 के अधीन दोषसिद्ध पर न्यायालय
उन सब प्रतियों कें जिसके बारे में दोषसिद्धी हुई है और जो न्यायालय की अभिरक्षा
में है, सिद्धदोष व्यक्ति के कब्जे में या सख्ती में है। नष्ट किए जाने के लिए
आदेश दे सकता है। ऐसी स्थिति में कोई भी अभियुक्त माननीय न्यायालय की आदेश को
मान्य करेगा और यदि वह ऐसा नहीं करता है तो वह कठोर दण्ड के कारावास से दण्डनीय
होगा।
उक्त प्रकरण में धारा 113 के अधीन जारी किए
गए प्रत्येक समन या वारंट क साथ धारा 111 के अधीन किए गए आदेश की प्रति होगी और
उस समन या वारंट की तामील या निष्पादन करने वाला अधिकारी वह प्रति उस व्यक्ति को
परिदस्त करेगा जिस पर उसकी तामील की गई है या जो उसके अधिन पकड़ा गया है।
अपीलार्थीगण की ओर से यह तर्क किया गया है
कि उक्त मामले में सभी साक्षी हितबद्ध साक्षी है।
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