Saturday, 28 April 2018

43 WPM


निसहाय स्‍त्रीया सदैव ही सांतवापूर्ण शब्दों  और सद्भावनापूर्ण प्रदर्शन के लिए अपने पतियों की ओर देती है। अभियुक्‍त ने उसे सांतना देने और उसकी मानसिक परेशानी और तनाव को दूर करने के बजाह वह वैवाहिक बंधन तोड़ने का प्रयास किया जो उस समय तक उन्‍हें उनके वैवाहिक जीवन से बांधे हुए था। पवित्र मंगल सूत्र ऐसी किसी हिंदु पत्नि के लिए संरक्षकता का एक मजबूत साक्ष्‍य होता है जिसे कि वह अपने वैवाहित बंधन के अत्‍यंत पवित्र सूत्र के रूप में समझती है। अभियुक्‍त द्वारा उसकी इस पवित्र चैन को अभ्रदापूर्वक और बर्बरता पूर्वक खीचा गया था और इस प्रकार अभियुक्‍त ने उसको अनियंत्रित मानसिक आघात और तीव्र व्‍यथा कि स्थिति में छोड़ दिया था किसी विश्‍वसनीय हिंदु पत्नि के लिए उसके पति द्वारा मंगल सूत्र को खीचने का यह अर्थ है कि वह विधवा हो गई थी। और उसके पास अपने जीवन को समाप्‍त करने के सिवाय और कुछ चारा नहीं रह गया था। अत: अभियुक्‍त का यह कार्य स्‍पष्‍टत: इस प्रकार के स्‍वैच्‍छिक आचरण या उसके परिधी के अंतर्गत आता है जो उसको अपनी जीवन लीला समाप्‍त करने के लिए प्रेरित करे।
     भारतीय दण्‍ड संहित की धारा 498-क के स्‍पष्‍टीकरण के अंतर्गत स्‍वैच्छिक आचरण के समान सभी कार्यों का जिनसे क्रूरता गठित होती हो, उल्‍लेख करना यदि असंभव नहीं है तो कठिन अवश्‍य है। यह भी  संभव नहीं है कि ऐसे कार्यों को किसी कठोर सूत्र की परिभाषा के भीतर रखा जाए। सभी स्त्रियां एक जेसी नहीं होती कुछ स्‍ित्रियां साहसी और कुछ शाही होती है और इतनी दृण निश्‍चयी होती है कि अंत तक अमानवीयता और शारीरिक तथा मानसिक कष्‍ट को सह सके। तथापि कुछ स्त्रिया ऐसी होती है जो अत्‍यंत कमजोर, कमजोर दिमाग, डरपोक और अत्‍यंत भावुक होती है कि वे मामूली तकलीफ, उपहास या सांकेतिक भाषा से उग्र प्रतिक्रिया करती है ऐसे तीसरे प्रवर्ग की स्त्रिया भी होती है जो कष्‍ट पूर्वक आघात को सह लेती है उंचे दर्जे की सहनशीलता उपदर्शित करते हुए और खामोशी से अमानवीयता को तब तक सहन करती रहती है जब तक कि स्थिति विस्‍फोटक ना हो जाये। अंतिम प्रवर्ग की स्त्रिया अपने वैवाहिक जीवन से संबंधित विशाद पूर्ण अध्‍याय को दूसरों पर प्रकट करना पसंद नहीं रखती है सिवास उन व्‍यक्तियों कें जिनमें वे पूरा विश्‍वास और भरोसा रखती है। न्‍यायालयों द्वारा दामपत्‍य दबाव में विशिष्‍ट स्‍त्री की सहनशीलता के बारे में विचार ऐसे अपराधो का विचारण करते समय किया जायेगा। ऐसा ही आचरण जो वर्तमान मामले में धारा द्वारा उपबंधित क्रूरता के बराबर हो सकता है दूसरे मामले में क्रूरता के समान नहीं हो सकता जो समाज के किसी वर्ग के लिए पूर्णत: उचित हो।

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