Monday, 23 April 2018

Hindi Dictation


उक्‍त प्रकरण में प्रस्‍तुत अभियोजन साक्ष्‍य से यह प्रमाणित नहीं है कि आरोपी ने दिनांक 04 जनवरी 2016 को शाम करीबन 6 बजे  शिव मंदिर के पास 18 वर्ष से कम उर्म की फरियादी द्वारा स्‍पष्‍ट अनिक्षा उपदर्शित किए जाने के बावजूद, बारम्‍बार पीछा कर संपर्क करने का भरसक प्रयत्‍न किया तथा लैंगिक आशय से बार बार पीछा कर लैंगिक उत्‍पीड़न किया। अत: आरोपी को धारा 354 भारतीय दण्‍ड विधान एवं धारा 12 लैंगिक अपराधों से पालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 के आरोप से दोषमुक्‍त किया जाता है। आरोपी के जमानत मुचलके छह माह पश्‍चात भारमुक्‍त समझे जावे।
            अभिलेख के अवलोकन से पता चलता है कि अ‍धीनस्‍थ न्‍यायालय द्वारा प्रतिवादी एवं अपीलार्थी पक्ष को साक्ष्‍य देने के लिए चार-पांच अवसर प्रदान किए गए है परंतु साक्ष्‍य तिथियों में समय अंतराल काफी कम रहा है उक्‍त दिनांक को वादी साक्ष्‍य समाप्‍त करने के पश्‍चात उक्‍त दिनांक को प्रतिवादी साक्ष्‍य देने के लिए नियत की गई। यद्धपि अधीनस्‍थ न्‍यायालय ने अपीलार्थी पक्ष को साक्ष्‍य देने के लिए अवसर प्रदान किए है।
            प्रेम में प्रतिदान की तनिक भी गुजांइश नहीं है। वे के आगे मुक्ति भी विफल है। प्रेम, प्रेम के लिए होना चाहिए। यह भाव भी नहीं होना चाहिए कि वह प्रेम कर रहा है। प्रेम में केवल देना ही देना है, लेना कुछ भी नहीं। प्रेम को विजारत ना बनने दे। प्रार्थना का असली अर्थ परमात्‍मा से किसी प्रकार की याचना नहीं है अहंकार वह वाधक तत्‍व है जो प्रेम को मनुष्‍य के भीतर ही उतरने नहीं देता, परमात्‍मा ही प्रेम है, लेकिन उसे निश्‍छल प्रेम ही चाहिए। लोग प्रेमवश जीवनदायनी किरणे विसर्जित करता है मेघ भेद-भाव के वगैर सभी के खेतों में बरसता है। नदी प्‍यास मिटाने के लिए निरंतर बहती है। बृक्ष फल जुटाने के लिए झुक जाते है। हवा जीवन देने के लिए बहती ही रहती है।  इस प्रेम के बदले वे हमसे कुछ नहीं चाहते, परंतु हम लोग भ्रांत सुख की खोज में नि:ममता से इन सब का दोहन करते रहते है। इस संकट से बचने के लिए हमे अपने को सबके साथ प्रेम के बंधन में बंध कर चलना होगा। हां अन्‍यथा हमारा ही अस्तित्‍व ही खतरे में पड़ जायेगा। यहीं प्रेम का सार है और इसे किसी भी तरह आत्‍मसात करना होगा।
            जहां तक मामले में वाहन चालक की लापरवाही का प्रश्‍न है तो इसके लिए आवश्‍यक नहीं है कि मामले की दुर्घटना को कठोरता से साबित किया जावे। इस संबंध में न्‍यायदृष्‍टांत विमला देवी एवं अन्‍य के विरूद्ध के मामले में एवं माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह निर्धारित किया गया है कि इस तरह के प्रकरण में दुर्घटना को कठोरता से साबित किया जाना आवश्‍यक नहीं होता है। और ऐसे प्रकरण में तथ्‍य को संदेह से परे प्रमाणित करने का सिद्धांत लागू नहीं होता है।

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