Friday, 27 April 2018

Hindi Dictation


विचारण न्‍यायालय में पुनरीक्षणकर्ता आरोपी की ओर से आवेदन पत्र अंतर्गत धारा 243 दण्‍ड प्रक्रिया संहिता प्रस्‍तुत कर लोक सूचना अधिकारी सहायक पुलिस महानिरीक्षक को प्रदर्श डी-10 व 11 से संबंधित असल रिकॉर्ड के साथ तलब किए जाने की प्रार्थना की गई है। विचारण न्‍यायालय द्वारा दोनों पक्षों को उक्‍त आवेदन पर सुनने के पश्‍चात आलोच्‍य आदेश पारित किया, जिसमें यह उल्‍लिखत किया गया कि साक्षी एसके दास ने प्रतिपरीक्षण में पद्रर्श डी-10 व 11 के पत्र विभाग द्वारा जारी किया जाना स्‍वीकार किया है। और यह दस्‍तावेज पूर्व में प्रदर्शित हो चुका है। और आरोपी साक्ष्‍य प्रस्‍तुत कर लेख तथ्‍यों को प्रमाणित कर सकता है। साक्षी को आहुत किया जाना न्‍यायोचित नहीं पाते हुए आवेदन निरस्‍त कर  दिया गया।
     जहां तक आवेदन पत्र में चाहे गये मूल रिकॉर्ड का संबंध है इस संबंध में यद्धपि आदेश में स्‍पष्‍ट रूप से उल्‍लेख नहीं है,
परंतु विधि का यह सर्वमान्‍य नियम है कि किसी अनुतोष को यदि आदेश या निर्णय के द्वार स्‍पष्‍ट रूप से नहीं दिया गया तो चाहा गया अनुतोष अमान्‍य कर दिया गया है। ऐसा मान लिया जायेगा। प्रदर्श डी-10 व 11 के दस्‍तावेजों के अवलोकन से यह पाया जाता है कि दोनों दसतावेज अभियोजन की साक्ष्‍य को प्रतिपरीक्षण के दौरान बचाव पक्ष की ओर से प्रदर्शित कर दिए गए है और उसके संदर्भ में प्रतिपरीक्षण में प्रश्‍न भी किए गए है।
     भारतीय साक्ष्‍य अधिनियम की धारा 64 के अनुसार दसतावेजो के संबंध में प्राथमिक साक्ष्‍य के द्वारा साबित किया जाना चाहिए, परंतु द्वितीय साक्ष्‍य के रूप में कब दस्‍तावेज के अस्तित्‍व की दशा और अंतवस्‍तु की साक्ष्‍य दी जा सकती है। इसके बारे में भारतीय साक्ष्‍य अधिनियम की धारा 65 में प्रावधान किया गया है, जिसमें यदि दस्‍तावेज लोक दस्‍तावेज है या किसी ऐसे दस्‍तावेज जिसकी प्रमाणित प्रति साक्ष्‍य अधिनियम या भारत की किसी अन्‍य विधि के अनुसार अनुज्ञात किया गया है वहां मूल दस्‍तावेज को पेश करना आवश्‍यक नहीं है।
     इसके अतिरिक्‍त दस्‍तावेज पेश करने या साक्षी को आहुत करने के संबंध में किया गया आदेश अंतवर्ती आदेश होता है, जिसके विरूद्ध पुनरीक्षण धारा 397 दण्‍ड प्रक्रिया के अंतर्गत ग्राह्रय नहीं है इस प्रकार पुनरीक्ष्‍ण अंतवर्ती आदेश के विरूद्ध किया गया है जो विधि अनुसार पोषणीय नहीं है इस सबंध में माननीय उच्‍च न्‍यायालय द्वारा मार्गदर्शी सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है, जिसके आलोक में इस आधार पर निरस्‍त किया गया है कि उन अभियुक्‍त द्वारा इस अवसर पर जिन साक्षीगण को आहुत किए जाने का निवेदन किया है, उन साक्षीगण का प्रतिपरीक्षण पूर्व अधिवक्‍ता द्वारा पूर्व में ही किया जा चुका है और बचाव पक्ष ने अपने आवेदन में ऐसा कोई विधिक बिंदु स्‍पष्‍ट नहीं किया है, जिससे उक्‍त साक्षीगण को आहुत किया जाना आवश्‍यक प्रतीत होता हो।

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