वादी का वाद संक्षेप में इस प्रकार है कि वादी के अनुसार उक्त
विवादित भूमि प्रतिवादी के स्वामित्व की भूमि है। वादी के अनुसार प्रतिवादी को
अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पैसों की जरूरत थी तथा उसने उक्त विवादित भूमि
को विक्रय करने का अनुबंध वादी से किया था। तथा उसी दिनांक को वादी से रूपए प्राप्त
करके वादी के हित में एक विक्रय अनुबंध पत्र उपपंजीयक के कार्यलय में पंजीबद्ध करा
दिया था एवं यह तय हुआ था कि जिस दिन वादी कहेगा एक वर्ष के भीतर उक्त भूमि का
विक्रय पत्र का पंजीयन वादी के हित में प्रतिवादी करा देगा तथा शेष बची हुई रकम
को वह वादी अदा कर देगा। वादी के अनुसार
प्रतिवादी के मन में वदनियति आ गई तथा वह 200 रूपए प्राप्त नहीं कर रही है और ना
ही वह विक्रय पत्र का पंजीयन वादी के पक्ष
में कर रही है। वादी के अनुसार उसने जो
प्रतिवादी को यह बोला कि शेष राशि प्राप्त कर लो एवं विक्रय पत्र निष्पादित करा
लो तथा विवादित भूमि का कब्जा सौंप दो, तब प्रतिवादी ने यह कहते हुए मना कर दिया
कि उसने कोई अनुबंध पत्र वादी के हित में नहीं लिखा। इस प्रकार प्रतिवादी विक्रय
अनुबंध पत्र का पालन नहीं कर सका। जबकि वह करने के लिए तैयार है। अत: उपरोक्त
आधारों पर वादी ने इस आशय की डिक्री चाही है कि उक्त विवादित भूमि से संबंधित
विक्रय अनुबंध पत्र का पालन कराते हुए प्रतिवादी को 2000 रूपए दिलाकर विक्रय पत्र
का पंजीयन वादी के हित में सम्पादित कराया जावे। और साथ ही विवादित भूमि का कब्जा
वादी को दिलाया जावे।
उक्त वादपत्र के
जबाव में प्रतिवादी द्वारा वादी के वादपत्र में किए गए अभिवचनों को पूर्णत: अस्वीकार
किया गया है। प्रतिवादी के अनुसार वादी द्वारा गलत आधारों पर वाद पत्र प्रस्तुत
किया गया है। प्रतिवादी द्वारा अपने जबाव में अभिवचित किया गया है कि उसने कोई
अनुबंध पत्र की लिखापढ़ी नहीं की और ना ही
प्रतिफल पाया। प्रतिवादी के अनुसार उक्त अनुबंधपत्र फर्जी व शूल्य है प्रतिवादी
के अनुसार उसने कोई राशि प्राप्त नहीं की और ना ही उसे प्राप्त करना शेष है। अत:
उपरोक्त आधारों पर प्रतिवादी द्वार वादी के वाद पत्र को अस्वीकार कर निरस्त
करने का अभिवचन किया गया है।
वादी साक्षी ने
अपने कथन में बताया है कि वह प्रतिवादी को जानता है। उक्त साक्षी के अनुसार प्रतिवादी
को पैसों की आवश्यकता थी और उसने उक्त विवादित भूमि विक्रय करने का अनुबंध दिनांक
को उससे किया था और उसी दिनांक को 2 लाख रूपए उससे प्रापत किए। उक्त साक्षी के अनुसार उक्त
विक्रय अनुबंध पत्र उपपंजीयक के कार्यलय में गवाहों कें समक्ष निष्पादित हुआ था तथा
यह तय हुआ था कि शेष 20 हजार रूपए
प्रतिवादी उससे प्रापत कर एक वर्ष के भीतर विक्रय पत्र का पंजीयन करवा देगी।
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